बचा टूटने से तो पत्थर बनेगा
ये मज़लूम कल का सितमगर बनेगा
नमी सब्र की , चंद क़तरे वफ़ा के
इसी रेत में इक समन्दर बनेगा
ये मज़लूम कल का सितमगर बनेगा
सलीबों को सजदा करेगी अक़ीदत
वहम ग़मज़दों का पयम्बर बनेगा
नमी सब्र की , चंद क़तरे वफ़ा के
इसी रेत में इक समन्दर बनेगा
न पायेगी ख़्वाहिश कभी बादशाहत
बना तो इरादा सिकन्दर बनेगा